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रोना निषेध है / मंजुला बिष्ट
Kavita Kosh से
लड़के सुनते रहे अपने पिता से
"लड़कियों की तरह क्या रोता है!"
लड़कियां भी सुनती रही अपनी माँ से
"यह औरतों की तरह रोना बन्द करों!"
रोना एक तरह से
सामान्य - नैसर्गिक मानवीय क्रिया न होकर
आदिम स्त्रैण गुण और स्त्री सुलभ कमजोरी सिद्ध था
लड़के को पुरूष बने रहने के लिए
कठोर बने रहना था
और लड़की को पुरुष जैसा बनने के लिए
अधिक कठोर होना था
अब तुम अफसोस करते हो कि
यह दुनिया इतनी कठोर क्यों होती जा रही है!
जबकि,सबसे आसान था
मन्दिम रोकर कोमल बने रहना
और हमने तो
आँसुओं को सुखाने के ताबड़तोड़ ढेर प्रबंध किए हैं।