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लक्ष्मीजी पधारी है / पद्मजा बाजपेयी

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आयी है दीपावली, दियों का साथ लिए,
लक्ष्मीजी पधारी है, सोलह श्रंगार किए,
मृदु बयनी गान करे, मनागल के भाव लिए,
कुमकुम-सिंदूर थाल, फूलों का हार लिए।
लक्ष्मीजी पधारी है, सोलह श्रंगार किए...
तोरण, पताका, ध्वज, झूम रहे द्वार-द्वार
रॉम-रॉम पुलकित है, अंग-अंग में बहार,
संध्या-दुल्हन, छिप-छिपकर झांक रही,
घूँघट में बैठी है प्रीतम का प्यार लिए।
लक्ष्मीजी पधारी है, सोलह श्र्ंगार किए...
ज्योति पुंज विकसित हो, अंधकार का विनाश,
मानवता प्रेम बढ़े, घृणा का हो सर्वनाश,
पावन धरती का, हर प्राण आज पावन हो,
शब्द पुष्प देवी को अर्पित है नूतन संदेश लिए।
लक्ष्मीजी पधारी हैं, सोलह श्र्ंगार किए...
नयी सुबह मंगल हो, कर रही विचार री
नूपुर स्वर गूंज रहे, गीतों का साथ दिए।
कुमकुम सिन्दूर थाल, दुर्वा दीप फूल-हार,
धूप-दीप शोभित है, सतरंगी पाट है,
चारों ओर चौकों से, जगमगात भवन आज है,
भोग के लगावन को, व्यंजन है भांति-भांति।
लक्ष्मीजी पधारी है, सोलह श्र्ंगार किए...