ललकार / वहीद
तूने गर ठान लिया जुल्म ही करने के लिए,
हम भी तैयार हैं अब जी से गुज़रने के लिए।
अब नहीं हिंद वह जिसको दबाए बैठे थे,
जाग उठे नींद से, हां हम तो सम्हलने के लिए।
हाय, भारत को किया तूने है ग़ारत कैसा!
लूटकर छोड़ दिया हमको तो मरने के लिए।
भीख मंगवाई है दर-दर हमंे भूखा मारा,
हिंद का माल विलायत को ही भरने के लिए।
लाजपत, गांधी व शौकत का बजाकर डंका,
सीना खोले हैं खड़े गोलियां खाने के लिए।
तोप चरख़े की बनाकर तुम्हें मारेंगे हम,
अब न छोड़ेंगे तुम्हें फिर से उभरने के लिए।
दास, शौकत व मुहम्मद को बनाकर कै़दी,
छेड़ा है हिंद को अब सामना करने के लिए।
बच्चे से बूढ़े तलक आज हैं तैयार सभी,
डाल दो हथकड़ियां जेल को भरने के लिए।
उठो, आओ, चलो, अब फौज में भर्ती हो लो!
भारत-भूमि का भी तो कुछ काम करने के लिए।
ख़ां साहब और राय बहादुर की पदवी लेकर,
जी-हुजूरी और गुलामी ही है करने के लिए।
ईश्वर से प्रार्थना करता है यही आज ‘वहीद’,
शक्ति मिल जाए हमें देश पे मरने के लिए।
रचनाकाल: सन 1922