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ललक / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
(कालिदास से साभार)
हाथ मैं ने
उँचाए हैं
उन फलों के लिए
जिन को
बड़े हाथों की प्रतीक्षा है ।
फलों को
मैं देखता हूं
जानता हूं
चीन्हता हूं
और
उन के लिये
मुझ में ललक भी है ।
हाथ मैं ने
उँचाए हैं
उन फलों के लिये
जिन को
बड़े हाथों की प्रतीक्षा है
डर नहीं है
हँसा जाऊँगा !
('तुम्हें सौंपता हूं' नामक संग्रह से )