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लहर. / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
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वह
साँवली औरत
जब कभी बहुत खुशी से भरी
कहती है –
``मैं बहुत हरामी हूं!’’
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
मूर्तियाँ
किताबें
अपनी जुत्ती का पाँव
बन रही छत
और
ईंटें ईंटें ईंटें।