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लाखों का दर्द / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
लखूखा आदमी दुनिया में रहता है
मेरे उस दर्द से अनजान जो कि हर वक़्त
मुझे रहता है हिन्दी में दर्द की सैकड़ों
कविताओं के बावजूद
और लाखों आदमियों का जो दर्द मैं जानता हूँ
उससे अनजान
लखूखा आदमी दुनिया में रहे जाता है।
(4.2.61)