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लाल / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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किसे कहूँ लाल ?
तुम्हें !
मेरा लाल रँग तो तुम हो !
आज समझ पाया हूँ
सूर्य डूबते-डूबते कैसे
रँगीन कर जाता है
नदी तट से घिरी
वनभूमि को ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी