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लिखना / अशोक भाटिया
Kavita Kosh से
लिखना
अपने को छीलना है
कि भीतर हवा के आने–जाने की
खिड़की तो निकल आए
लिखना
शब्द बीनना है
कि भीतरी रोशनी
दूसरों तक यों पहुँचे
कि भीतरी किवाड़ खोल दे
लिखना
एक उगना है
एक उगाना है
कि शब्द जहाँ पड़ें
उग आएँ हर ज़मीन में
पनप आएँ रेगिस्तानों में भी
और खींच लाएँ पानी को
लिखना आख़िर
पानी तक पहुँचना है ।