भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखने का बुखार / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

दादाजी हैं सत्तर पार
पर लिखने का चढ़ा बुखार।

क़लम कांपती धुंधला दिखता।
फिर भी हाथ लपककर लिखता।
अब तक कभी न मानी हार।

सोच-सोच कर लिखते जाते।
कभी सोच में गोते खाते।
सोच क़लम के जुड़ते तार।

कौओं कोयल पर लिख डाला।
कंप्यूटर में भी मुंह मारा।
लेखन उनका जीवन सार।

रात देर तक जागे हैं जब।
दादी कहती सो जाओ अब।
नहीं सोये, होंगे बीमार