भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लिहाफ खींच लेती / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
सुबह हो या शाम
हर वक्त हड़बड़ी है,
आफत मेरी घड़ी है!
दीवार पर टँगी है
या मेज पर खड़ी है,
हाथों में बँध गई तो
सचमुच यह हथकड़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!
सुबह-सुबह सबका
लिहाफ खींच लेती,
शालू पे गुस्सा आता
गर आँख मीच लेती।
कहना जरा न माने,
ऐसी ये सिरचढ़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!
तैयार होकर जल्दी
स्कूल दौड़ जाओ,
शाम को घर आकर
थोड़ा सा सुस्ताओ।
फिर पढ़ने को बिठाती,
ये वक्त की छड़ी है!
आफत मेरी घड़ी है!