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लोकराज रो संविधान / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
रच्यो देस रै संविधान नै
नेता, पंडित, त्यागी,
आजादी रा वीर सिपाही
भारत रा अनुरगी,
बणा देस री भासा प्यारी
हिन्दी नै सनमानी,
इण रै सागै सोळै भासा
न्यारी न्यारी मानी,
इण निरणै नै लियो देस री
एकठ रा सै हामी,
लोकतंत्र री आ विसेसता
दीखै आंख्यां सामी,
जे बै देता थोप एकली
हिन्दी नै ही भासा !
कट बंट ज्यांतो मुलक
बदळती भारत री परिभाषा,
पण जद जद भी मांग करी म्हे
म्हारै हक रै ताणी,
कयो, हाण हिन्दी री करसी
भासा राजस्थानी,
जका कवै आ बात बापड़ा
स्वारथवष अज्ञानी,
भारत-बट री जड़ खोदणियां
अै चूसा स्याच्यांणी,
आठ कोड़ मिनखां री मायड़
भासा समरथ लूंठी,
नहीं मानता द्यो तो टांगो
लोकराज नै खूंटी !