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लोग / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
चल रहे हैं लोग
सिर्फ़ पीछे भीड़ के !
जाना कहाँ
नहीं मालूम,
हैं बेख़बर
निपट महरूम,
घूमते या इर्द -
गिर्द अपने नीड़ के !
छाया इधर-
उधर जो शोर,
आया कहीं
न आदमखोर ?
सरसराहट आज
जंगलों में चीड़ के !