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लौटते हुए / प्रेमरंजन अनिमेष
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एक सीधी सी बात है
जो भटकाती मुझे
शाम काम से घर
उछाह में भर कर
लौटने की एक वजह
कम हो गई है
रास्ता तकती
दरवाजे पर
अब माँ नहीं
है तो वह कहीं
वह है हमारे साथ ही
सिर पर उसी का तो हाथ है...!