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वर्जित फल / प्रत्यूष चन्द्र मिश्र

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1.

यह तुम थी पहली बार
रिश्तों के गणित से परे
सहज सम्बन्धों से सराबोर
फ़ोन पर तुम्हारी काँपती आवाज़
और चुम्बनों की अनवरत बौछार
इस जटिल दुनिया में
जहाँ हर तरफ काँटे हैं बिछे
यह सिर्फ़ तुम्हारा हाथ है
जिसने थाम रखा है मेरा दुख ।

2.

इस पूरी दुनिया की सृष्टि क्या सचमुच
किसी वर्जित फल के खाने से हुई है
यह सवाल मथ रहा था दिनों से
पर तुमसे मिलने के बाद लगा
वर्जित फल में सचमुच
एक नई दुनिया को जन्म देने की ताक़त है ।

3.

प्यार में क्या कोई देवता रहता है
कोई पवित्र अबोध ईश्वर
पर मेरी तो इन धार्मिक संस्कारों में आस्था नहीं
मैं तो तुम्हारी उपस्थिति में ही मन्त्रबिद्ध रहता हूँ
यह सिर्फ़ तुम्हारा होना है
जो मेरे होने को बनाए रखता है ।

4.

तुम बार-बार कहती थी
रोना कमज़ोरी की निशानी है
मैं बार-बार कहता था
कमज़ोर आदमी रो नहीं सकता
तुम कहते थे
बेकार चले जाएँगे तुम्हारे आँसू
काश ! तुमने मेरे आँसुओं को
शब्दों में बदलते देखा होता ।

5.

तुम्हारे साथ होता हूँ
तो बिछड़ जाने का एक डर भी बना रहता है
नर हूँ तो
एक तड़प एक बेचैनी एक आदिम कामना
तुमसे मिल पाने की
कोई तो थर्मामीटर हो जो माप सके हमारा ताप
कोई तो कैमरा हो जो क़ैद कर सके यह सारा दृश्य
नहीं किसी तकनीक में इतनी ताक़त नहीं
मेरी आत्मा पर जो दवाब है
उसकी तरंगों को पकड़ सकने का हुनर
सिर्फ़ तुम्हारे पास है ।