वर्त्तमान परिदृश्य / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
युगक चक्र घुमिते रहैत अछि देखू बैसि तमासा,
रसमलाइ भऽ बासि गन्हायल, अछि स्वादिष्ट बतासा।
हालत देखि मृदंग दंग अछि, कड़कि रहल अछि ताशा,
झुला रहल प्रतिभाशालीकेँ आशा तथा निराशा॥
घोड़ा धोबी घाट धरत आ गदहा रेस खेलायत,
निट्ठूर दूध दहीसँ मक्खन सहजहि आब बिलायत।
रोपल रहत बूबर ताहिमे चम्पा फूल फुलायत,
बाबू भैया सभक मोंछमे मटियातेल मलायत॥
हाकिम बनि कुर्सीकेँ छेकत सब भुसकोलक टाड़ी,
शिक्षक बन्धु पढ़ाबय औता पिबि भरि लबनी ताड़ी।
खेड़ही रहत विखिन्न, हविष्य कहाओत आब खेसाड़ी,
वनबिलाड़ वनराज बनत आ सिंह नुकायत झाड़ी॥
पित्तड़ि लग सोनाक मोल क्यौ नीक लोक नहि मानत,
लाठी रहतै जकरा से भरि गामक महिँस दफानत।
पाछाँ डाका दैत रहल पहिने लऽ लेत जमानत
से बुधियार बनत संसद मे जते जोरसँ फानत॥
जातिवाद निर्मूल करक हित जातिक लैछ सहारा,
अन्यायेटा करय, लगाबय जे सब न्यायक नारा।
जे गण्डा-गाही नहि बूझय, से पढ़बैछ पहाड़ा,
खौझायल अपना पर अनकर पितरक कोड़य सारा॥
जतय शिवक छाती पर रखने पैर ठाढ़ छथि काली,
जतय समन्वित देव-शक्तिसँ दुर्गा खप्पर वाली-
अवतरली चण्डी-चामुण्डा नचली दऽ दऽ ताली
ततय लो चाहैछ देशकँ हम न्यूयार्क बना ली॥
एही ठाम अर्द्धनारीश्वर रूप भेल छथि भोला,
जनिका ले नित्तह पीसै छथि गौरी भाङक गोला।
जे अछि चाहि रहल करबय पति-पत्नि बीच दुगोला,
तकर माथमे की गोबर छै भरल अठासी तोला?
बलिदानीक रक्तमे सानल ई स्वतन्त्रता आयल,
पाँचो दशक न बीतल तनिकर स्मृति पर्यन्त आयल,
ठोर-ठोर पर फुफड़ी देशक कण्ठक सेप सुखायल,
हास्य कतय सँ आनब? करूणे कण-कणमे सन्हिआयल॥