भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वहाँ-यहाँ / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
वहाँ वह बेहद गरमी में
पानी का गिलास उठाती है ;
यहाँ मैं जानता हूँ
कि ठीक उसी समय
मेरी प्यास बुझ रही है ।