वापसी का सफ़र / अमीता परसुराम मीता
मेरी तलाश मुझे ले चली है माज़ी में
तुम्हीं बताओ मैं ख़ुद को कहाँ तलाश करूँ
पिघल पिघल के सदा इम्तिहाँ की आतिश में
वुजूद ढ़ल गया मेरा अजीब साँचों में
वो इक वुजूद जो रिश्तों में खो गया है कहीं
उसी वुजूद को फिर से कहाँ तलाश करूँ
तराशना है नया इक मुजस्समा1 या फिर
मैं अपने गुमशुदा2 हिस्सों को फिर तलाश करूँ
तुम्हीं बताओ मैं ख़ुद को कहाँ तलाश करूँ
सवाल ये है कि तुम से ही क्यों मुख़ातिब3 हूँ
चलो बताऊँ तुम्हें, तुम से क्यों सवाल किया
तुम्हीं पे आ के रुका था मोहब्बतों का सफ़र
तुम्हीं हो आख़री पहचान मेरे होने की
तो क्यों न तुम से शुरू हो ये वापसी का सफ़र?
तुम्हारे प्यार के बदले जो प्यार तुम को दिया
मेरी वफ़ाओं ने जो इख़्तियार तुम को दिया
वो इख़्तियार जो तुमने क़फ़स4 में ढ़ाल दिया
उसी कफ़स से रिहाई है इब्तिदा5 मेरी
तुम्हारे नाम किया था जो उम्र का हिस्सा
ये इल्तिजा6 है मेरी आज मुझको लौटा दो
बड़ा कठिन है मेरी जाँ ये वापसी का सफ़र
रिहाई दे के मुझे, आज मुझसे मिलवा दो
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