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विदा केवल शब्द नहीं / कल्पना पंत

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उस दिन मैंने जाना कि
पहाड़ बहरे हो रहे हैं
और हवा का दम घुट रहा है
जब तुमने विदा कहा
तब से वादी के खिले फूल मुरझा गए हैं
और धूप कंपकपा रही है
मैने चिड़िया को चुप देखा
और हिरनी को जड़ पाया
झरने मानो थम गए हैं
नदी किनारे ठिठक गई है
रात यहीं पर रुक गई है।