विधाता बैरी भयो / निर्मल कुमार शर्मा
जिण रे तल़े मिलती शीतळ छाया
फूल्या-फ़ल्या मैं, खेल्या-खाया
सूख्यो बो बट , लुटियो चैण
विधाता बैरी भयो !!
गोद्याँ सुलायो म्हाने, कान्धां झुलायो म्हाने
कोर काळजिये ज्यूँ, हिव चिपकायो म्हाने
फेरया यूँ आज देखो नैण
विधाता बैरी भयो !!
आंगली पकड़ म्हाने चलणो सिखायो
हर आपद सूँ लड़णो सिखायो
आज हुया निरमोही केण
विधाता बैरी भयो !!
जद भी करी हठ, म्हाने मनायो
हेज अणूथो ही, म्हापे लुडायो
आज रूस्या यूँ, बोले नी बैण
विधाता बैरी भयो !!
झेल्या सभी दुःख, खुशी सब बाँटी
सोवाँ मैं सुख सूँ, बे जग रातां काटी
आज सूत्या यूँ, खोले नी नैण
विधाता बैरी भयो !!
रचणा जो थांरी है, थां में समाणी
इतरो निठुर है थूं , या मैं नी जाणी
बिण सांझ ढल्यां आयी रैण
विधाता बैरी भयो !!
जिण रे तल़े मिलती शीतळ छाया
फूल्या-फ़ल्या मैं, खेल्या-खाया
सूख्यो बो बट , लुटियो चैण
विधाता बैरी भयो !!