भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरासत / न्गुएन चाय / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने लोक ढंग से कविताएँ पढ़ीं
पानी जो बह चुका है, अब वापिस नहीं लौटेगा
अतीत छुप चुका है वायवीय धुएँ में
रास्ते में जो बाधाएँ हैं, उन्हें वो नहीं घोटेगा

चान्दनी की राह बन्द थी, बांसवन सघन था,
झरने रोक नहीं पाए काले बादलों की छाया
सुनहरे और रुपहले रंगों का जो छन्द था
उस विरासत को भी हमारे समय ने भरमाया

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय