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विरासत / न्गुएन चाय / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
मैंने लोक ढंग से कविताएँ पढ़ीं
पानी जो बह चुका है, अब वापिस नहीं लौटेगा
अतीत छुप चुका है वायवीय धुएँ में
रास्ते में जो बाधाएँ हैं, उन्हें वो नहीं घोटेगा
चान्दनी की राह बन्द थी, बांसवन सघन था,
झरने रोक नहीं पाए काले बादलों की छाया
सुनहरे और रुपहले रंगों का जो छन्द था
उस विरासत को भी हमारे समय ने भरमाया
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय