वेदना भी धन्य है / अनुराधा पाण्डेय
वेदना भी धन्य है, औ धन्य है हृद का मिलन भी।
मापनी होती न इसकी, माप लें परिमाण जिसका।
प्रीत होती या न होती, यह अधिक या कम न होती।
देख कर प्रिय पात्र का दुख, हो न यदि विचलित कभी मन।
फिर भला वह चाह कैसी, आँख भी यदि नम न होती।
वंद्य होता है प्रणय में, धुर विरह का चिर तपन भी।
वेदना भी धन्य है औ
सृष्टि के परिपाक हित यह, जोड़ने वाली कड़ी है।
ध्वंस हो जाये जगत तो भी न यह क्षण को मरी है।
इस भुवन अस्तित्व के तो मूल में ही राग के रज।
वंचना भी साथ है पर प्रीत इससे कब डरी है।
और इसने कर समर्पण है वरा ख़ुद ही मरण भी।
वेदना भी धन्य है औ
एषणा से रिक्त होकर, राग ने वैराग्य धारा।
प्रेम है वह ओज जिसने, भक्ति धारी सर्व हारा।
चख सका जो यह अमल रस, भूल बैठा इस भुवन को
याद फिर उसको रहा कब, कौन जीता कौन हारा?
दीन धरती का विभव यह, नत हुआ जिस पर गगन भी।
वेदना भी धन्य है औ धन्य है हृद का मिलन भी।