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वैहसाँ जोगी दे नाल / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
मैं वैहसाँ जोगी दे नाल माए नी, मत्थे तिलक लगा के।
मैं वैसाँ रैहसाँ हरगिज़ होड़े, कौण कोई मैं जान्दी नूँ मोड़े।
मैनूँ मुड़ना ताँ मुहाल होया नी,
सिर ते मेहना चा के।
जोगी नहीं कोई दिल दा मीता,
भुल्ल गई मैं प्यार कीता।
मैनूँ रही ना कुझ सँभाल नी,
उस चा दरशन पा के।
इस जोगी मैनूँ कोहिआँ लईआँ,
हाऊँ कलेजे कुण्डिआँ पाईआँ।
इशके दा पाइओ सु जाल नी,
मिðी बात सुणा के।
इस जोगी नूँ मैं खूब पछाता,
लोकाँ मैनूँ कमली जाता।
लुट्यो सू झंग स्याल नी,
कन्नीं कुन्दराँ पा के।
जे जोगी घर आवे मेरे,
चुक्क जावण सभ झड़े झेड़े।
लावाँ मैं सीने दे नाल नी,
लक्ख लक्ख शगन मना के।
शब्दार्थ
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