भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यवस्था / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
दर्प गुफाओं से
शहद की मक्खियों का बड़ा झुण्ड
फैल गया है सारे आकाश पर
शहीदी मुद्रा में.
उनके पास पराग भी है
और डंक भी.
नीचे खुदते हुए नाले की मुँडेर पर
खड़ा मजूर/गर्दन उठाए
लगातार देख रहा है
काले आसमान को.
एक थकान-
धीरे-धीरे जकड़ लेती है उसकी गर्दन.
वह थकी गर्दन का बोझ लादे
फावड़ा लिए घुस जाता है नाले में
और शहद की मक्खियाँ
(डंक छिपाए)
शहद के छत्ते में.