भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यूह बनते है दलों के / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
व्यूह बनते हैं दलों के एक दल चुनना पड़ेगा
फिर महाभारत निकट है
लक्षणों से यह प्रकट है
शंख नीरव है रहें पर
भर चुका अब धैर्य घट है
रात दिन उद्योग चलता
पक्ष वर्धन की विकलता
पाँव सिऱ की ओर दो हैं, एक की सुनना पड़ेगा
चढ़ विमान सघोष आया
साथ अपने कोष लाया
एक पहले एक पैदल
संकुचित संतोष लाया
सुप्त तुम कब तक जगोगे
पक्ष में किस के लगोगे
एक अपहर्त्ता अपर कर्त्ता तुम्हें गुनना पड़ेगा
बरसता है एक सोना
चाहता है कुछ न खोना
स्वर्ण श्रृंखलबद्ध जग से,
अन्य रक्षक मात्र होना
एक अणुबम पर खड़ा है
अन्य जीवन से जड़ा है
सोच लो, जो बीज बोओगे तुम्हें लुनना पड़ेगा
(रचना-काल - 02-11-48)