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शपथ तुम्हारी / कुमार रवींद्र
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शपथ तुम्हारी
हाँ, नदिया- पहाड़ जंगल
है शपथ तुम्हारी !
मरने नहीं उसे देंगे हम
जो तुमने है सौंपी थाती
यानी सपने, ढाई आख़र
औ' दीये की जलती बाती
होने कभी नहीं
देंगे हम
अपने पोखर का जल खारी !
संग तुम्हारे हमने पूजे
इस धरती के सभी देवता
ग्रह-तारा-आकाश-हवाएँ
भेजा सबको रोज़ नेवता
तुलसीचौरे की
बटिया की
हमने है आरती उतारी !
नागफनी के काँटे बीने
और चुने आकाश-कुसुम भी
हमने सिरजे धूप-चाँदनी
बेमौसम के रचे धुँध भी
सारी दुनिया के
नाकों पर
गई हमारी विरुद उचारी !