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शरीर के बोझ तले / नितेश व्यास
Kavita Kosh से
मेरे शरीर के बोझ तले दब रही आत्मा
शब्दों का सहारा लेकर
खडी होती है किसी तरह कविता में,
पर तुम उसे
वाचालता कहकर छिटक देते हो
शास्त्र मुझे समझाते हैं कि
आत्मा नहीं जन्मती, मरती भी नहीं
लेकिन मैं जानता हूँ
वो मुझमें कई बार जन्मी है
मैने उसे मुझमें मरते देखा है
कई बार
मैं रोया हूँ उसकी मृत्यु पर
मैं नाचा हूँ उसके जन्म पर
वो बदलती होगी देहों को वस्त्रों की तरह
लेकिन कर रही मुझे निर्वस्त्र
हर क्षण
बदलने के लिए॥