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शिकायत एक बच्चे की / विचिस्लाव कुप्रियानफ़
Kavita Kosh से
बहुत अरसे से मैं बड़ा हो नही रहा
मेरी नीली धमनियों में
चल रहा है एक परमाणु-यान
अपने ऊपर रॉकेट लादे ।
मैं देख नहीं पा रहा
आँखों की पहुँच नहीं उस तक
कहाँ बनाएगा यान अपना अड्डा
मेरे हृदय में या मस्तिष्क में ।
क्षीण पड़ रहा है आँखों का ताल
गेंद की तरह उछल रहा है सूर्य
मुझे लग रहा है मैं बौना हूँ
कुछ नहीं कर सकता रोने के सिवा ।
मेरे जलते हुए इन आँसुओं को
रोकने दो सूरज को डूबने से
चेहरे से उड़ने दो आँखों को
चुँधियाते सौन्दर्य के संसार की तरफ़ ।
और यदि जब रोशनी आए
मैं मर जाऊँगा अपने मायाजाल के साथ
कि यह यान तो चलता जाएगा
घायल कर देगा मेरे भाई या बहन को ।