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शिक्षा अधिकारी से बातचीत / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
मेरे एक परिचित हैं
शिक्षा अधिकारी
सरकारी गोदामों के लिए
करते हैं
साहित्य की खरीदारी
मैनें उन्हें भेंट की पुस्तक
तो लगे पूछने - यह क्या है
मैंने कहा-कविता
सुनकर कुछ चौंके
फिर बोले
देखो बुरा मत मानना
इससे गोदाम में दीमक का डर है
आपकी पुस्तक में
कविताएँ भी नहीं पूरी
कोई पंक्ति बड़ी
कोई छोटी
यानी हर कविता अधूरी
उस पर भी
एक पृष्ट पर
कुल चार-पाँच पंक्तियॉँ
शेष पृष्ठ कोरा
आडिट को क्या उत्तर दूँगा
जब पूछेगा
पुस्तक के बदले
आधी लिखी कापी क्यों मंगाई
और छियानवे पृष्ठों का मूल्य
छ: रुपया कैसे दिया
इतने में
रामायण और महाभारत
दोनों को
क्यों नहीं खरीद लिया