भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शीत की प्रभात / मधुछन्दा चक्रवर्ती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शीत की प्रभात में
मैं कहु प्रकृति की बात।
उसके हरियाली आँचल में
फैला घना कोहरा,
बीच में से आती सूरज की किरणें,
लगते सोना खरा।
या यू लगता जैसे
सफेद सोने में चमक रहा हो
पीले पत्थर की चमक
ये है प्रकृति की दमक।
ओस की बूँदें हैं या
प्रकृति ने किया अभी स्नान।
भीगे पत्ते भीगी कलियाँ,
काँपते फूलों की पंखुरियाँ।
गेंदा, पारिजात, गुलाब, डेहलिया
करते है इसका श्रृंगार।
शीत की शोभा का क्या कहना।