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सँवरती चली गयी / प्रेमलता त्रिपाठी
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जीवन बना सुछंद सँवरती चली गयी ।
मन भावके गुलाल छिड़कती चली गयी ।
बाधा करें निढाल बढ़ी कामना सुपथ ,
हरपल भरे हुलास उभरती चली गयी ।
साधक हृदय सुहास किरण बन प्रभात मैं,
आभा लिए उजास उमगती चली गयी ।
गहने नहीं शृँगार हृदय प्रेम ले बढ़ा,
सब साधते सवाल सँभलती चली गयी ।
नीरव सुधी समाज सृजन प्राण साधना,
ले वंदनीय भाव निखरती चली गयी ।