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संख्या के बच्चे / श्रीकांत वर्मा

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सच है ये शून्य हैं—
और तुम एक हो।
बड़े शक्तिशाली हो,
क्योंकि शून्य के पहले
उसके दुर्भाग्य-से खड़े हो।
अपनी आकांक्षा के क़ुतुब बने सांख्य!
मत भूलो—
तुम भी आँकड़े हो।

मत भूलो—
तुम केवल एक हो
शून्य ही दहाई है, शून्य ही असंख्य है।
शून्य नहीं धब्बे हैं,
आँसू की बूंदों-से
लोहू के क़तरों से, शून्य ये सच्चे हैं।
संख्या के बच्चे हैं।

शून्यों से मुँह फेर खड़े होने वाले!
शून्य अगर हट जाएँ
ठूँठे की अंगुली केवल रह जाओगे।
मत भूलो—
शून्य शक्ति है, शून्य प्रजा है।