भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संगीत / केशव
Kavita Kosh से
					
										
					
					कहीं गा रहा कोई गीत 
घंटियाँ बज रहीं 
            मंदिर में 
उठो 
डुबोकर 
खुद को  
गीत और घंटियों के स्वर में
खींच लाओ 
        बाहर 
यह संगीत 
बजता है 
खेतों में 
धान के बालियों में 
हवा में सिहरता है 
कितना धर्य है इसमें 
चुप्पी को 
आहिस्ता-आहिस्ता 
खोलता है 
एक बच्चे की जिज्ञासा से 
इसे बजने दो 
भीतर कोहरे को सोख लेगा 
धरती को 
     एक साज़ की तरह 
अपनी गोद में रखकर 
यह धैर्य है अगर 
तो यह गीत 
फूटेगा तुहम्हारे होठों से भा 
हाँ 
यह 
धैर्य 
है तुममें
	
	