भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संग यादों के / प्रगति गुप्ता
Kavita Kosh से
चलो तुम्हें खुद के संग
सफ़र में ले चलूँ
कुछ तुम्हारी बातें
कुछ भूली बिसरी यादें
रख अटैची में
करीने से तह किये
कपड़ों के बीच
चलो तुम्हें खुद के संग
सफ़र में ले चलूँ
जब कुछ और नहीं हो करने को
संग हवा, पेड़ पौधें,
और उनकी छाँव तले,
तेरी यादों को बुनती चलूँ...
देख तू भी कैसे
समय से तुझे चुरा, चुराकर
तुझे संवारती चलूँ...
प्रिय चल
तुझे खुद के संग
सफ़र में ले चलूँ...