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संताली / बुद्धिनाथ मिश्र

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हम संताली,
वन के भोले-भाले वासी ।

एक हाथ में धनुष राम का
एक हाथ मुरली कान्हा की ।
दोनों मिली विरासत हमको
तन में, मन में उनकी झाँकी ।

हम संताली,
छल से दूर, सहज विश्वासी ।

वन के पेड़ सहोदर अपने
उनका साथ कभी ना छूटे ।
जाँगरतोड़ हमारी मिहनत
से पानी के सोते फूटे ।

हम संताली,
रहते जहाँ वहीं है कासी ।

ओ मारीचो ! अब मत आना
इस पर्वत पर धर्म सिखाने ।
हम गिरिजा के पुत्र चले हैं
मन-मन्दिर में दीप जलाने ।

हम संताली,
जिएँ गुरूजी, कटे उदासी ।