संदूक / राजा खुगशाल
वार्निश उतर गई
कुंदे उखड़ गए
जंग के चकत्तोंे का
पिचका हुआ आयत है
हमारा संदूक
जिसे हम कभी बक्साु
और कभी ट्रंक कहते हैं
बक्सेी के एक कोने में कभी
तहाए हुए कपड़े
बहन का बुना हुआ स्वे टर
साबुन की बट्टी
नीम की दातुनें
माँ के दिए चिउड़े
और चने-चबैनों की पोटली होती थी
दूसरे कोने में
भौतिकी और रसायन की किताबें
अर्थशास्त्रस के सामान्यी सिद्धांत
हिंदी साहित्यय का इतिहास
ओथेलो
पाठ्यक्रम के बीच ताश की गड्डी
बीड़ी का बंडल
और माचिस की डिबिया होती थी
वजनदार पुश्तैिनी ताला
लटकता था कुंदे पर
आते-जाते हुए जिसकी चाबियाँ
छनक उठती थीं अकसर
काले रंग पर
अंग्रेजी के सफेद हरफों में
दूर से नजर आता था भाई का नाम
हवलदार महावीरप्रसाद
पढ़ने-लिखने के बारे में
पिता की चिट्ठियाँ
सुई और धागा
लिजलिजे प्रेम-पत्र
मीर व गालिब के शेर
अखबारों की कतरनें
ठुंसी होती थी पॉकेट में
गाँव से शहर
शहर से गाँव
शहर-दर-शहर
प्रतियोगी परीक्षाओं की धूप सही संदूक ने
मेरे कंधों पर
छात्रावासों से जनवासों तक
कब्जेा उखड़ गए
रंग उड़ गया
धुंधले पड़ते गए
भाई के नाम के हरफ
छीजती गई इस्पाहत की चद्दर
संदूक में पड़ी डिग्री
और चरित्र-प्रमाणपत्रों पर जम धूल को
हर साल झाड़ता हूँ मैं
चूहों-तिलचट्टों की आरामगाह
नहीं बनने दिया हमने अपने संदूक को
जीवन के कुछ अच्छेन दिन
जुड़े हुए हैं इससे
बीवी बच्चोंं के साथ
दिन-ब-दिन मुश्किल होता गया
संदूक को संदूक कहना
घर की सजावट के खिलाफ
तेजी से खटारा होता रहा संदूक
मेरी उपस्थिति में एक दिन
कमरे से रसोई में गया
और मौसम की सब्जियाँ
संभालने लगा संदूक
नया संदूक आने तक
संदूक की जगह पर मैं
दाढ़ी बनाऊँगा
सिगरेट सुलगाऊँगा
सन्दूटक होता हुआ देखूंगा
शीशे में अपना चेहरा
और चेहरे पर पड़ी
झुर्रियों को गुनगुनाऊँगा।