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संस्कृति / हरिपाल त्यागी
Kavita Kosh से
एक दिन/अचानक
पान की गिलौरी मुंह में दबाए/धोती-कुरते में
मूर्तिमान हो उठी/भारतीय संस्कृति
मैंने उसे सामने से देखा
लेकिन-
लेकिन हाय!
मुझे उसकी पीठ ही दी दिखाई।
मैंने उसकी आंखों में झांकना चाहा
तो पाया कि/उसके चेहरे का रुख
उड़ते हुए हवाई जहाज की तरफ था।
आखिर-
धोती का पूरा-पूरा फायदा उठाते हुए
खुले में खड़े होकर
उसने कसकर/धार मार दी
और-
देर तलक
देखता रहा
दीवार का
भी-ग-ना...