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सच / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
काँपते हाथों से
मैं जहाँ लिखूँगा
प्यार
वहाँ कमल पत्र खिल जाएगा
एक दिन
भीतर जन्म लेते
उमड़ते नादानुरागी
सागर की लहरियों पर तिरकर
एक दिन,वह सच हो जाएगा
सच!
मुझे मालूम नहीं था