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सच को सच कहने की खातिर / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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सच को सच कहने की खातिर एक बार फिर मरना होगा।
जो कर सके न और दूसरे वही हमें अब करना होगा॥

सच की राह कठिन है साथी
कितने पर्वत कितने सागर।
इस को अपनाने की इच्छा
जैसे सिंधु समेटे गागर।
गागर का आयात कठिन है
या सच को पाने की कोशिश ?

यहाँ आपदाओं से ही अपना संसार सँवरना होगा।
सच को सच कहने की खातिर एक बार फिर मरना होगा॥

दुनिया की यह दुनियादारी
सच की चोट न सह पायेगी।
यह भी सच है सिर्फ झूठ के
साथ नहीं यह रह पायेगी।
झूठ और सच के अंतर्द्वंदों से
यदि चाहो पाना छुटकारा -

इसके लिए तथ्य को मिथ्या से हर बार गुजरना होगा।
सच को सच कहने की खातिर एक बार फिर मरना होगा॥

संघर्षों में दृढ़ रहने का
साहस हो है बहुत जरूरी।
मिट कर कितने हृदय मिटा
पायेंगे सत्य झूठ की दूरी।
कभी न सूनी हो पायेगी
बलिदानों की रक्तिम वेदी

जीवन कठिन कसौटी मन को थोड़ा और निखरना होगा।
सच को सच कहने की खातिर एक बार फिर मरना होगा॥