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सताना, बंद करो / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सदा अँधेरे तीर चलाना,बंद करो ।
रास न आये रंग जमाना,बंद करो ।
अधिकारों की बातें करना,ठीक नहीं,
किस्सा अपना वही पुराना,बंद करो।
अंग भंग कर पुण्य धरा को,बाँट दिया ।
घायल माँ को और सताना, बंद करो ।
उर के दाहक चीर हरण कर,बैठ गये,
बातों से अब मन बहलाना, बंद करो।
हित चिंतन में बने विरोधी,आपस में
शब्दों के सब तीर चलाना,बंद करो।
दया प्रेम सद्भाव बसाओ,जन-जन में,
षडयंत्रों का पाठ पढ़ाना, बंद करो ।