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सदस्य:Sanjaysheshker
Kavita Kosh से
उनके दानिश-ए-हयात पर हम फ़ना हो गए, फिल-हकीकत-ए-करम से जां-बलम हो गए। वो समझे हम रुखसार-ए- हुस्न पर मर गए, अब कौन समझाये उन्हें, वो क्या गुनाह कर गए। ये दिल-ए-"अधूरा" हैं, इश्क-ए-अरमान मर गए, हम समझते थे उन्हें संजीदा, वो रंग-ए-वफादार हो गए। जौहर-ए-नगीने के पारखी जौहरी हो गए, गुमान-ए-हुस्न सबाब, अब फौरी हो गए। नांजा झूठे हुस्न-ओ-लुआब तुम्हारे चले गए, और आई साथ निभाने की बारी तो आशिक-ए-हुजूम बिखर गए।