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सदस्य वार्ता:Shesh Dhar Tiwari
Kavita Kosh से
अगर मंज़ूर कर लो तुम हमारी हीर हो जाना करें मंज़ूर हम दीवार पर तस्वीर हो जाना
मेरी अकड़ी हुई गर्दन से हो शिकवा अगर तुझको मुनासिब ही रहेगा, तेरा इक शमशीर हो जाना
अगर हो मुत्मइन रुतबा है मेरा अह्ले आ'ज़म का मुझे तुम क़त्ल करना और आलमगीर हो जाना
तुम्हारी क़ैद में रहना मुझे आराम ही देगा बशर्ते तुम करो मंज़ूर खुद ज़ंजीर हो जाना
तेरे ख़्वाबों के दम पर ज़िंदगी मैं काट सकता हूँ कम अज़ कम वक़्ते आख़िर ख़्वाब की ताबीर हो जाना
हमें ज़हनी तवाज़ुन ठीक रखकर मश्क़ करना है नहीं मुमकिन है रातों रात ग़ालिब मीर हो जाना
किसी की ख़ामियाँ बनती नहीं हैं ख़ूबियाँ अपनी नहीं मुमकिन किसी नापारसा का पीर हो जाना