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सपने-7 / सुरेश सेन निशांत
Kavita Kosh से
ज़रा-सी ही हुई बारिश
कि सपने लेने लगे जन्म
फूटने लगे हरी कोंपलों से
किसानों की आँखों में
बच्चों की इच्छाओं में
औरतों के गीतों में
अच्छे कवियों ने भी बचाए रखा सपनों को
अपनी कविताओं की ओट में
आग में नहीं झुलसने दी उनकी देह
बाढ़ में नहीं डूबने दिया उनका गेह
सपने उनके रहे कृतज्ञ
सदियों तक