सपनों का शस्त्रीकरण / माया मृग
एक था सपना।
दूसरा था सपना।
दोनों लड़ रहे थे।
मैदान चुप था/क्योंकि
वह समझा रहा था
सपनों का अर्थ-शांति का अर्थ।
एक सपने के हाथ में
तलवार थी।
तलवार का लोहा
बहुत चमकीला था/और
धार-धारदार थी
लोहा-पहले बहुत काला था
मिट्टी-सना भी था
पर सपने ने-दोनों हाथों से
पत्थर पर रगड़-रगड़
बहुत चमका लिया था।
दूसरे सपने के हाथ में
एक तलवार थी
पर उसने
तलवार से पहले
ढाल बनाई थी
जो अब तक बहुत काली थी।
कालापन रात से आया था
क्योंकि धरती घूम गई थी
सूरज पिछवाड़े गिर पड़ा था
और कछुए की पीठ
पहले थोड़ी लम्बी-चपटी थी
पर धीरे-धीरे गोल हो गई
कछुआ-अपने पैरों को
पीठ की खाल के निचे
सिकोड़ना जानता था।
मैदान पर दोनों सपने लड़ रहे थे।
सपनों में शब्द नहीं थे,
सपनों में अर्थ नहीं थे,
सपनों के पास हथियार थे।
देर तक युद्ध चला
दोनों लहू-लुहान हो गिर पड़े
मैदान के बीचों-बीच।
मैदान के पास कच्ची मिट्टी थी
उसने कोई तलवार नहीं बनाई
ढाल भी नहीं ही बनाई।
सपने मर गये
मैदान हार गया।
सपनों का मरना
तुमने भी देखा-और तुमने भी
तुम चुप रहे-तुम चुप रहे।
मैदान का हारना मैंने देखा
मैं चीखूंगा-मैं चीखूंगा