भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबके प्रभु! सर्वान्तर्यामी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भीमपलासी-ताल कहरवा)

सबके प्रभु! सर्वान्तर्यामी! सर्वशक्ति! हे सर्वाधार!
सुनो हमारी सत्य प्रार्थना, करो कृपा अनवरत अपार॥
दो हम भारतके निवासियोंको, प्रभु! यह मंगल वरदान।
भौतिक, आध्यात्मिक बलके हम हों विशुद्ध पूरे बलवान॥
कभी चिरंतन धर्म न छोड़ें-शूरवीरता, साहस, प्रेम।
वैर-शून्यता, राग-शून्यता, सर्वभूत-हित, सर्व-क्षेम॥
पूजें, अपना रक्त-दान कर रणमें, हम रणसे भगवान।
तन-मन-धन सबका ही कर दें अति उत्साह-पूर्ण बलिदान॥
शौर्य-शक्ति-बल-धर्म-त्यागका सुन्दर शुभ रखें आदर्श।
मिट जाये अन्यायी-‌अत्याचारीका आसुर-‌उत्कर्ष॥
हो आसुर-दुर्मति, दुस्साहस, दुष्ट -प्रकृतिका पूरा नाश।
पूर्ण विजय पायें हम, छाये सभी ओर साविक उल्लास॥
चाहें कभी किसीका रञ्चक भी न बुरा हम किसी प्रकार।
सर्वोदय हो, सभी सुखी हों, प्रेम-धर्मका हो विस्तार॥
प्राणिमात्र सब सुखी-शान्त हों, मिटें सभीके सारे खेद।
भेदरूप इस अखिल विश्वमें देखें एक अखण्ड अभेद॥