सबरी / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
सबरी सयानी लीन साधना में बार-बार,
जपे राम नाम रोज राम अभिराम के।
कुटिया बहारे झारे सगरो निहारे झाँके,
प्रेमरूप अजगुत ताके छविधाम के।
मनवा में निरमल जोतवा जगा के रोज,
सुमिरन करे गुन गावे ऊ ललाम के।
अँखिया में दरस के लालसा बहार लेके,
रहे ऊ तो इन्तजार करे रविराम के।
भगति के उफनल बाढ़ में लगा के गोता,
ध्यानमा के सगर में मीन भेल सबरी।
सूझे नाहीं एको पल राम के बिना भी
बाँधे न सँवारे कभी भूल के भी कबरी।
प्रेम में विभोर रहे धीरज न छोड़े कभी,
टेरे निज ठाकुर के कहे हम का करी?
पूजा में मगन रहे गुन भी बखाने रोज,
भगति के गंगा में डुबावे मन-गगरी।
जंगल के भीलनी ऊ प्रेम में विराट लगे,
प्रेम के ऊ मूरत बनल सोभे वन में।
राम के निहारे रूप हारे नाहीं एको पल,
मिलन मधुर छन जोहे निज मन में।
चुन-चुन विहँसल फूलवा के माला गूँथे
राम के पेन्हावे लेल देखे ला नयन से।
धूत-अवधूत बन सबरी अचन मन,
प्रेम में मगन गावे छन्दवा सुमन से।
कुटिया में अविचल आरती उतारे रोज,
जिनगी के सफल बनावे लागी मन से।
बरस हजार बीते बीते चाहे कोटि जुग,
लेवे न विराम सती सबरी ऊ तन से।
रहल अछूत पर पावन परम भेल,
ओप में अनूप लागे तप के गगन से।
पंक में सरोज के ऊ विमल सरूप लेके,
दमके ऊ पावे प्रेम सब हरिजन से।
एक दिन प्रभु राम संग में लखन लाल,
लेके धनुबान चंड सबरी के पास में।
कमल नयन राम अयलन पम्पासर
सबरी के मनमा के ले के विसवास में।
सबरी बेहाल हल लख के नेहान भेल,
बगरल रूपवा ऊ धरती अकास में।
सबरी के मनमा में घिरल जे संका-मेघ,
छँटि गेल प्रेम के ऊ विमल प्रकास में।
जीवन-कदम्बवा में प्रभुनाम फूल फूले,
सबरी सुगन्ध बन झूमे वन वन में।
धुआँ से भरल घनघोर घन रतिया में,
रामनाम मनि-दीप हँसे रिसिवन में।
चरन पखारे पोंछे अँचरा से प्रभु जी के
मन में मगन दौड़े प्रेम के चमन में।
करिखा हटल सब सबरी विमल भेल
गेल ऊ लिपट अब राम के चरन में।
प्रभु जी के जीभिया बनल चखे बैरिया के
जेकरा में भरल मिठास देबे राम के।
प्रेम के अगिनिया में तप के विमल भेल
रूप तो बनल सती तेज अभिराम के।
सबरी नियन सती त्रेता में न भेल कोई,
कहलन प्रभुराम रूप छविधाम के।
सबरी के जिनगी बनल भागवत भैया
जपे जे न रामनाम ऊ तो कौन काम के।
सबरी जे नेहिया के रूप में अनूप लगे,
देखलक अजगुत रूप भगवान के।
राजीव नयन राम वचन में अभिराम,
देखे में भी अभिराम हेतु जे जहान के।
कलित ललित राम सबरी के नेहिया में,
भेजलन प्रेमधाम बिनु वेवधान के।
सुन्दर मतंग वन फुनगी हिलल सब
प्रेम में विभोर भेल छोड़ अभिमान के।
प्रेम रूप सबरी तो सिवरूप लगे भैया,
जगवा में सगरो बनल वरदान हे।
प्रेम के मिसाल बन सबरी अनन्त भेल,
प्रेम ही तो जगवा में सबसे महान हे।
धरम करम से भी जप जोग जाग से भी,
प्रेम तो प्रमान में अनन्त के निधान हे।
प्रेम तो ब्रह्मरूप आदि औ अनादि रूप,
जीव के कसौटी भैया प्रेम बलवान हे।