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सबसे पहले मांँ / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
माँ केवल माँ नहीं है
सुखद उपस्थिति है
किसी जज़्बात का
माँ कोई जन्नत नहीं है
वह तो खालिस धरती है
धरती पर मौजूद घर का ओसारा है
कोई सुरक्षित स्थान है
उसकी मौज़ूदगी एक इत्मीनान है
एक राहत है उसकी आवाज़
उसका परवाह करना
मुझे खुद से ही प्यार करना सिखाता है
जो कभी कभी मैं भूल जाता हूं
इतने मुश्किल भरे जीवन में
कुछ लोग हमें हर हाल में
मस्त देखना चाहते हैं
माँ उनमें से
एक और केवल अनुपम है
और
सबसे पहले है।