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सबसे प्यारी अपनी धरती / मधुसूदन साहा

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सबसे सुंदर, सबसे मनहर
सबसे प्यारी अपनी धरती।

हर प्राणी को अपनी बगिया
दुनिया भर से न्यारी लगती,
घर की रूखी-सुखी रोटी
पकवानों-सी प्यारी लगती,

अपनेपन का बोध जगाकर
साँसों में खुशबू भरती।

हर माली के मन को भाती।
सबसे ज़्यादा अपनी क्यारी,
नंदनवन से मनमोहक
लगती है अपनी फुलवारी,
फुनगी पर बैठी गौरैया
जब-जब मीठी बातें करती।

हर किसान को अपनी खेती
औरों से अच्छी लगती है,
जैसे पंखुरियों को तितली
भौरों से अच्छी लगती है,

अपनी धरती तो अपनी है
चाहे हो वह बंजर-परती।