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सभाव / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
जे
सोधतां
हीरो
पड़ज्या
आंख में
रावळियो
फिरै देतो
रेत नै आळ
काढतो गाळ
पणं खिमावान
धरती
जाणै मिनख रो
नुगरो सभाव !