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सभी अकेले / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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					दूर खड़े दिन
योगक्षेम के नये समय में
गुनी बाँचते
पढ़े कभी वह
हंस-बुद्ध की नीति-कहानी
ओछी माया 
के चक्कर में
फँसे मिले हैं कितने ज्ञानी
लोग हँसे हैं 
अपनो पर ही नये समय में
सभी नाचते
मंत्र धम्म के 
मिले सिसकते
महानगर में साँझ-सबेरे
रोज अमानुष 
घटनाएँ अब
दिखीं डालती घर-घर डेरे
सभी अकेले
नहीं किसी के नये समय में
लोग झाँकते
हवा प्रदूषित 
कटुक वचन हैं
जले बाग-वन धूम्र दिशाएँ
वचन तथागत 
के घायल हैं
जहर सनी कुछ चलीं हवाएँ
टूट रहे पर
अपनी-अपनी नये समय में
लोग हाँकते
	
	