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समझदारी न हो तो दिल में क्या क्या बैठ जाता है / गौरव त्रिवेदी

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समझदारी न हो तो दिल में क्या क्या बैठ जाता है,
ग़लतफ़हमी से अच्छा खासा रिश्ता बैठ जाता है

वही चेहरा जो दिख जाता था तो हम मुस्कुराते थे
वही चेहरा जो दिख जाए तो दिल सा बैठ जाता है

अगर ख़ुश हो मेरा दिल तो तुझे ही याद करता है
तुझे ही याद करके दिल दुबारा बैठ जाता है,

तुम्हारे होंठ पर होकर फिदा बैठा है काला तिल,
उसी तिल के बगल में दिल हमारा बैठ जाता है

कोई बोले अगर मुझसे के गौरव लखनऊ आओ,
मेरी आँखों मे झट से तेरा चेहरा बैठ जाता है